जीवन एक अनुबंध है,
सामाजिक प्रतिबंध है,
एक परस्पर संबंध है,
मान्यताओं मे बंद है,
धर्म कर्म मे द्वंद है,
यही तो अंतर्द्वंद है,
जीवन एक निबंध है.
या फिर यह एक छ्न्द है,
कभी कभी तो मतन्ग है,
विरक्त हुआ तो मलंग है,
यानी जीवन तो स्वच्छन्द है,
ईश्वर का एक प्रयोग है,
अपना भी सहयोग है,
जीवन तो आनंद है
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शब्दों के इस आडंबर को भाषा का श्रंगार न मानो , तो फ़िर बात करुं मै तुमसे
दिल से निकले उदगारों को एक अद्द्द उद्द्गार न मानो , तो फ़िर बात करुं मै तुमसे
निराकार की बातों का तुम अगर कोई आकार न मानो, तो फ़िर बात करुं मैं तुमसे
बातों को बस बातों में ही यूही गर साकार मान लो , तो फ़िर बात करुं मै तुमसे