तेरे शहर की भीड़ अब मुझे बिल्कुल नही सुहाति है,
जब भी तन्हा होता हूँ, मेरे गाँव की याद आती है।
पहचान तो बहुत है मेरी शहर में, ये रिश्ते, ये संबंध रिझाते भी हैं,
पर जब भी तन्हा होता हूँ कही दूर से आवाज़ आती है,
कि अब मुझे तेरे शहर की भीड़ बिल्कुल नही सुहाति है।
समंदर में हाथ डालकर, मोतीयों की चाह
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